‘वास्तु’ का शाब्दिक अर्थ है निवास करना, जिस भूमि पर व्यक्ति निवास करते हैं उसे वास्तु कहा जाता है। भवन निर्माण भारत में एक धार्मिक अनुष्ठान है। एक आर्किटेक्ट एक सुन्दर भवन तो बना सकता है परन्तु उसमें रहने वाले प्राणी के सुखी जीवन की गारंटी नहीं दे सकता है।
– वास्तुशास्त्र मानव के सुखी जीवन की गारंटी देता है। व्यक्ति के विकास एवं खुशहाली में 50 प्रतिशत योगदान भाग्य का एवं 50 % योगदान वास्तु का होता है।
– वास्तु बहुत बृहद है जो मनुष्य के निवास एवं व्यवसायिक और औद्योगिक प्रतिष्ठान के लिए विभिन्न वास्तुगत नियमों का प्रतिपादन करती है। भवन निर्माण एवं नींव खनन का मुहुर्त देखकर कार्य प्रारम्भ होना चाहिए।
– एक मकान के लिए, भूमि का उत्तम होना जिसमें उसका आकार, दिशा एवं उर्वरा शक्ति का परीक्षण आवश्यक है।
– मकान के निर्माण में विद्या एवं पूजन स्थान, पाकशाला, शौचालय, शयन कक्ष, संग्रह कक्ष का दिशा निर्धारण आवश्यक है।
– जल के बहने का स्थान उसके एकत्र होने के स्थान का निर्धारण, बगीचा, सीढियां व रिक्त स्थान का उचित निर्धारण आवश्यक है।
-वास्तुपुरुष को जो मार्मिक अंग है जैसे- मुख, मस्तक, स्तन, हृदय व लिंग… इनपर कील स्तम्भ व अन्य गम्भीर भार नहीं डालना चाहिए। उदाहरण स्वरूप हृदय स्थान मकान के मध्य भाग पर स्तम्भ का नहीं होना भूभाग खाली रखना। उत्तर एवं पूर्व दिशा में स्थान रिक्त रखने के साथ भवन का निर्माण कराना चाहिए।
– भवन स्वामी के ज्योतिषीय मूल्यांकन यथा वह किस ग्रह से ज्यादा प्रभावित है, इससे भी विशिष्ट वास्तु नियमों का निर्वहन करना चाहिए।
– मकान में प्रवेश की दिश्सा व स्थान द्वार वेध, मकान वेध, मार्ग वेध का विशेष ध्यान भी वास्तु में सम्मिलित हैं।
– उत्तर दिशा में कुबेर का वास होने से धन का वहीं पर रखना, दक्षिण व पश्चिम में भूमि का ऊंचा होना, पूर्व व उत्तर के ढलान, ईशान में धर्म व अध्ययन कृत्य, दक्षिणपूर्व में पाकशाला, मध्य में आंगन या लॉबी।
– वायव्य (उत्तर-पश्चिम), नैऋृत्य (दक्षिण-पश्चिम) में शयनकक्ष एवं शौचालय का निर्माण कराना चाहिए।
– उत्तर में जलाशय, सीढ़ियां, बगीचा, तहखाना, मुख्य द्वार
– पूर्व में मुख्यद्वार, जल प्रवाह, बगीचा, नीची भूमि, बरामदा आदि का निर्माण उत्तम है।
– वास्तु नियमों के पालन से भवन में रहने वालों को धर्मलाभ, अर्थलाभ, कामसुख एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है।अत: भवन निर्माण के प्रारम्भ में वास्तु पूजन एवं निर्माण के बाद विधिवत प्रतिष्ठा, वास्तुपूजन, गायत्री जप, गणपति पूजन, रुद्र जप, नवग्रह पूजन एवं सम्पूर्ण ग्रह शान्ति हवन कराना चाहिए। रामचरित मानस का पाठ परम आवश्यक है।
– व्यवसायिक उन्नति के लिए वास्तु नियमों का पालन आवश्यक है। होटल, दुकान, कार्यालय, फैक्ट्री की भूमि का उचित परीक्षण उसकी दिशा द्वारा वेध विचार व निकास द्वार, व्यवसायिक प्रतिष्ठान व कार्यालय में बैठने का स्थान व दिशा, उत्पादन का स्थान, मशीनों का स्थान दिशा के साथ विद्युत का स्थान, स्टोर का स्थान, जल का स्थान का विचार वास्तु नियमों के अनुयार होना चाहिए।
– भूमि शोधन, नींव मुहुर्त, श्रीयन्त्र स्थापना, बही खाता पूजन, आसन गद्दी की स्थापना आवश्यक है।
-वास्तुगत नियम बृहदतम है जिनका उल्लेख संभव नहीं है। अमुक व्यक्ति एवं विशेष व्यक्ति के अनुसार कौन कौन से वास्तु नियमों का प्रयोग करना है यह ज्योतिषीय परीक्षण के पश्चात सम्यक ज्ञान व तार्किक मूल्यांकन द्वारा संभव हो पाता है।
Astro Divine Sutra में आपका स्वागत है, जहाँ ब्रह्मांड की दिव्य ऊर्जा से आपको आत्म-खोज और जीवन की दिशा में मार्गदर्शन मिलता है। ज्योतिष के गहरे ज्ञान के माध्यम से हम आपको व्यक्तिगत रीडिंग्स, ज्योतिषीय उपाय और गहन विचार प्रदान करते हैं, ताकि आप अपनी पूरी क्षमता को पहचान सकें और जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकें।
© All Rights Reserved.