हस्‍तरेखा

जो वर्तमान है वो व‍िगत का पर‍िणाम है और वर्तमान की उसका कारण है जो भव‍िष्‍य में होने वाला है। वर्तमान के कर्म भव‍िष्‍य पर अपना प्रभाव डालते हैं।

हस्‍तरेखा के माध्‍यम से व्‍यक्ति के भूत, वर्तमान एवं भव‍िष्‍य का ज्ञान कराया जाता है। ज‍िसमें मृत्‍यु, उन्‍नत‍ि, अवनत‍ि, भाग्‍योदय, दुर्घटना, रोग, व‍िवाह, संतान, व‍िद्या, यश, म‍ित्रता, शत्रुता व उपरोक्‍त का का समय काल खण्‍ड का ज्ञान कराया जाता है।

मुख्‍यतया: हथेली का अध्‍ययन तीन भागों में व‍िभाज‍ित है।

1- अंगुल‍ियों की बनावट व अंगूठा

2- हथेली के पर्वत

3- हथेली का मध्‍य व मण‍िबंध स्‍थान

इसके साथ हथेली में च‍िन्‍ह, प्रतीक, आकृत‍ियों का भी भव‍िष्‍य कथन में प्रमुख योगदान है। जैसे- क्रॉस, वर्ग, द्वीप, यव, मत्‍स्‍य, सीप, त्रिशूल, गदा, शंख, त्रिभुज आद‍ि। इसके साथ ही हथेली में रेखाओं का उदगम स्‍थान, उनकी स्‍पष्‍टता, गहराई, टूट, समाप्‍त‍ि स्‍थान, उलझती रेखाएं, अध‍िक व कम रेखाएं एवं हाथों के बनावट, नाखूनों की स्‍थित‍ि का भी भव‍िष्‍य कथन में प्रमुख योगदान है।

हाथ में मुख्‍य रूप से आयु रेखा, भाग्‍य रेखा, मस्‍त‍िष्‍क रेखा, स्‍वास्‍थ्‍य रेखा, व‍िवाह रेखा तथा गुरु, शुक्र, शन‍ि मेखला का न‍िर्वचन आवश्‍यक होता है।

उसी प्रकार हाथ में गुरु पर्वत, शन‍ि पर्वत, सूर्य पर्वत, बुध पर्वत, शुक्र पर्वत, चन्‍द्र पर्वत तथा न‍िम्‍न मंगल, उर्ध्‍व मंगल एव मंगल का मैदान व‍िवेचन के ल‍िए प्रमुख है।

उंगल‍ियों की पोरों का अध्‍ययन, उनकी लंबाई, मोटाई, व‍िकृत‍ि का अध्‍ययन भी भव‍िष्‍य कथन के ल‍िए आवश्‍यक है।

हाथ के प्रकार

मुख्‍यतया सात प्रकार के हाथ होते हैं।

1- निम्‍न श्रेणी का हाथ (Elementry Hand)

ऐसा हाथ बेढंगा, अपर‍िष्‍कृत, अंगुल‍ियां व नाखून छोटे, हाथ की ज‍िल्‍द खुरदुरी, मोटी होती है, रेखाएं कम होती हैं। ऐसे लोग कम मानस‍िक क्षमता के होते हैं। इनका झुकाव पाशव‍िक वृत‍ि की ओर होता है। अंगूठा छोटा एवं मोटा होने के कारण ह‍िंसक प्रवृत‍ि, शीघ्र आवेश परन्‍तु साहसी नहीं होते हैं।

2- वर्गाकार हाथ (Square Hand)

हथेली के नीचे और ऊपर का भाग एक जैसा चौड़ा हो, यह उपयोग हाथ है। ऐसे लोग व्‍यवहार‍िक, कार्य कुशल व सामंजस्‍य वाले होते हैं।

3- चमसाकार हाथ (Stapulated)

कलाई के पास हाथ अध‍िक चौड़ा तथा करतल अंगुल‍ियों की ओर नुकीला होता है।

चमसाकार हाथ सख्‍त और दृढ हो तो जातक का स्‍वभाव अधीर और उत्‍तेजनापूर्ण होगा, परन्‍तु उसमें कार्यशक्ति और उत्‍साह प्रचुर मात्रा में होगा।

यद‍ि हाथ कोमल, प‍िलप‍िला हो तो जातक च‍ित्‍त अस्‍थ‍िर व स्‍वभाव च‍िड़च‍िड़ा होता है।

4- दार्शन‍िक हाथ (Philosophic Hand)

यह हाथ प्राय: लम्‍बा व नुकीला होता है। अंगुल‍ियों की गांठें उन्‍नत और नाखून लंबे होते हैं। ऐसे लोग बुद्ध‍िजीवी, व‍िचार प्रधान, मानस‍िक व‍िकास सम्‍बंधी कार्यों में प्रवीण होते हैं। धन को कम महत्‍व देते हैं धन वृद्ध‍ि में असहायक होते हैं।

5- नुकीला हाथ/कलात्‍मक हाथ (Conic or Artistic Hand)

मध्‍यम आकार का हाथ, अंगुल‍ियां अपने मूल स्‍थान में पुष्‍ट एवं अंत में कुछ नुकीली होती हैं। इस प्रकार के हाथ वालों में आवेग की प्रधानता होती है। ऐसे व्‍यक्ति व‍िचार करके, गुण दोष देखकर कार्य नहीं करते। मन की जब जैसी रुच‍ि हुई वैसा ही काम कर डाला। ऐस व्‍यक्ति कला प्रेमी होते हैं। बहुत से व‍िव‍िधताएं भी होती हैं, परन्‍तु आलसी भी होते हैं।

6- आर्दश हाथ/अत्‍यन्‍त नुकीला हाथ (Ideal Hand)

यह सर्वोत्‍तम हाथ है। यह अत्‍यन्‍त नुकीला हाथ है, इसे आध्‍यात्‍म‍िक हाथ भी कहते हैं। ऐसे हाथ सुडौल, मुलायम, सुन्‍दर व‍िशेष लचक ल‍िए होते हैं।

वास्‍तव‍िक आध्‍यात्‍म‍िक हाथ म‍िलना कठ‍िन होता है। ऐसे लोग स्‍वप्‍न की दुन‍िया, प्रत्‍येक वस्‍तु में सुंदरता ढूंढते हैं। आदर्शवादी होते हैं। ऐसे हाथों के स्‍वामी जीवन यात्रा के संघर्षों का सामना करने में समर्थ नहीं होते हैं। इंसान के रूप में श्रेष्‍ठ होते हैं।

7- म‍िश्र‍ित लक्षणों वाला हाथ (Mixed Hand)

ऐसे हाथ में सभी प्रकार के हाथों के लक्षण होते हैं। अंगुल‍ियां म‍िश्र‍ित होती हैं। ऐसे हाथ वाला जातक सर्वतोमुखी अनेक गुणों से युक्‍त और पर‍िवर्तनशील होता है। अपने आप को सभी पर‍िस्‍थित‍ियों के अनुकूल बना लेता है।